आशिक की आहों को कौन सुनता है, उन फसानों को सुननेवाला कोई नहीं। जिसे सुनाना था वो तो कहीं और नई दुनिया बसाने के लिए चली गई। वो अब किस नए शहर में है, ये भी मुझे मालूम नहीं।
तुम कौन से शहर में चली गई मुझे छोड़कर। इश्क की बस अधूरी दास्तान रह गई है मेरे साथ तन्हा। तुम्हारा साथ जैसे यादों का सफर बनकर रह गया है जिसकी राहों में बस दर्द देनेवाले लफ्ज बिछे हैं।
उन यादों को रखा है सीने में संभालकर ताकि तुम कभी मिलो तो फिर उसे दुहरा सकूं। लेकिन शायद ये मुमकिन न हो। तुम एक बार जाती हो तो फिर कहां लौटकर आती है, मुड़कर भी तो नहीं देखती।
नया घर, नया शहर, नए लोग, नए रिश्ते। ऐसे में पुराने रिश्ते पुराने होते चले जाते हैं और तुम भी बहुत दूर निकल जाती हो। जिंदगी से दूर, खुद से दूर,अपनी मंंजिल से दूर। नई जिंदगी, नया सफर, जहां तुम्हारे सिर पर लाख जिम्मेदारियों का बोझ होता है। वो बोझ क्या कभी पुराने दिनों को याद करने देगी तुम्हें…
दिन गुजरते जाएंगे, साल गुजरते जाएंगे और उम्र भी गुजर जाएगी। मेरे हाथों में इश्क की ये अधूरी किताब कभी पूरी हो न पाएगी, न ही मैं इसे लिखकर पूरी कर पाऊंगा। अधूरा प्यार भी शायद अपने आप में मुकम्मल होता है। दो दुनिया के बीच में फंसे प्यार की मंजिल शायद जुदाई ही है…लेकिन दिल है कि तुमसे मिलने की जिद करता है। उसे कहां मालूम कि तुम कहां हो और मालूम हो भी तो शायद तुमसे मिल न सकूं..यही इश्क कहता है…
ये आहें सुनाते हैं कितने फसाने
कैसे जाएंगे हम तुमको सुनाने
तेरा शहर अब जाने कहां है
किधर तू गयी नई दुनिया बसाने
ye aahen sunate hain kitne fasane
kaise jaenge ham tumko sunane
tera shahar ab jane kahan hai
kidhar gayi tu nayi duniya basane
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