मैं बिना पत्थर के ही आईने से लड़ने गया
अपने दुश्मन महबूब से प्यार मैं करने गया
इक हसीना चांद लेटी बादलों की सेज पर
मैं नदी में डूबकर उस साये को छूने गया
रात भर रोया फलक आशिक के संग जागकर
मैं भी दुनिया छोड़कर मातम वहीं करने गया
वो दीया जो जल रहा है मेरे उजड़े आशियां में
मैं उसी की रोशनी में उम्रभर जलने गया
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