ओ तन्हा छोड़ के जाने वाले आखिरी दास्तां सुनते जाओ
तू खुदा तो नहीं था मगर उम्र गुजरी तेरी इबादत करते
इस दिल को समझाऊंगी कि तुमको याद न किया करे कभी
ऐ दिल, फूल गले ना लगाए तो कांटों को नहीं चूमा करते
आजकल में कहीं मिल जाओ तो तुम बस इतना ही करते
मेरी टूटी-उलझी राहों को सीधा कर गांठ लगाया करते
अगर सौ बार जनम लूं धरती पे बस यही ख्वाहिश है मेरी
काश! हर जनम में तुम ही मेरी मैयत को जरा कांधा देते