आवाज न कोई दूर तक, आहट न कोई दूर तक
इंसां न कोई हमसफर, चाहत न कोई दूर तक
बेखुद मेरी तन्हाइयां किस राह पर हाय चल पड़ी
मकां न कोई दूर तक, मंजिल न कोई दूर तक
मुसाफिरों की भीड़ में कुछ लोग जो मितवा हुए
वो रह गए रुककर कहीं, मैं चल पड़ा कहीं दूर तक
दरिया ही एक महबूब है, वो चांद ही एक यार है
मेरी आंख भी बहती रही, जलता गया दिल दूर तक