खुदा न मिला था हरेक आदमी में
न सच का पता था हरेक आदमी में
सबकी आंखों में दुनिया की सूरत दिखी
झूठ का आईना था हरेक आदमी में
सब लड़ते रहे जब अपने ही घर में
कोई अपना कहां था हरेक आदमी में
दबके दौलत तले रूह भी मर गए
जिस्म ही बस बचा था हरेक आदमी में
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