रात खामोश है मेरे दिलबर की तरह
बड़ा सुनसान है मेरे रहगुजर की तरह
मेरे आंसू से शीशे को भी गम होता है
आईना देख रहा है मुझे पत्थर की तरह
मेरी सूरत पे ये जो मायूसी के साये हैं
वो मुझमें समाई है उदास मंजर की तरह
नींद ने आज न आने की कसम खाई है
आज फिर आंख रोएगी समंदर की तरह
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