जख्मे दिल फिर दुखने लगे हैं
हम कतरा-कतरा मरने लगे हैं
हर मौसम अब लगता है सावन
रोज ही हम बरसने लगे हैं
जिनके लिए हम जगते हैं वो
गैरों के पहलू में सोने लगे हैं
टूट गया हाय दिल का आईना
आंखों से शीशे पिघलने लगे हैं
ऐसे एहसास को तुम जवानी लिखो
इश्क हटा दोगे सीने से, आखिर क्या रह जाएगा
- तू मेरे शहर से भी गुजर जाएगा एक दिन
- दिल थाम कर जाते हैं हम राहे-वफा से
- कांटों के अंजुमन में खिलके बड़े हुए
- ये मुहब्बत भी कश्मीर बनके रह गई
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