ये जिस्मो-जां और मेरे सारे जज़्बात
तुझे करते हैं याद, दिन हो या रात
चांद अब तक नहीं आई मेरे दामन में
उदास है मन सोचकर बस यही बात
मैं समंदर हूं, दरिया हूं या कुछ भी नहीं
जब पानी नहीं तो सबके एक से हालात
मन में आती है, पहलू में तो नहीं आती
क्यों कराते हो ऐ ख्वाब उनसे मुलाकात
अब तो इंतहा हो चुकी है मेरे सब्र की
शायद खुदा को मंजूर नहीं हमारा साथ