जानेजां हूं मैं अब तेरा गुनहगार सही
ले तू खंजर और कर दे आर-पार सही
मौत यूं भी तेरे हाथों लिखी है जालिम
जो लिखी है उसे तू पढ़ ले एक बार सही
सामने तुम जो रहोगी तो मर न पाऊंगा
चाहे खंजर ये चुभाओगी कई बार सही
जानता हूं कि ये सजा भी न दे पाओगी
आ भी जाऊं तेरे दर पे मैं बार-बार सही
जानते है हम भी मोहब्बत के उसूल …
सजाए उम्रभर की मिले,हो गुनाह एकबार सही।
सजाए दे के ही दम लेती,ये अदालत ऐसी…
दलीले कोई दे बेगुनाही की,हजार सही।
ये वो औजार है,जो न बुझता है युगा….
जलने सेही आता है,इसे निखार सही।
खेल है ऐसा, हर खिलाड़ी हँसकर हारे…
कभी हारे है शिकारी,कभी शिकार सही।
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