इश्क शायरी 1-10
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ऐसा लगता है मुझे तू रातभर सोयी नहीं
मेरे दिल पे छा गया है इश्क का ऐसा जुनूं
इश्क सच्चा हो तो वो तमाशा क्यूं बने
तस्वीर के मानिंद ही आंखों में आ ज़रा
हो जाता है दिल ये हल्का गम के आंसू रोने से
पलकों में रखे अश्क न गिर पाते आंख से
अपने भी, पराए भी, कुछ दूर के साथी हैं
पल दो पल ये साथ हमारा, एक मुसाफिर एक हसीना
जब-जब सितम तूने किया, हम सह गए दिल खोल कर
इश्क शायरी 11-20
ये हुस्न देखकर ही तो वो चाँद परेशान है
जागता है कोई दर्द ही सोने की जगह
चाँद बदन को चूम रहा है, दरिया गुमसुम लेटी है
भले दुनिया नहीं देखेंगे इन आंखों से
वो मुसाफिर भी किसी मोड़ पे भला क्यूँं रुकता
मुझसे कुदरत की ख़ामोशियों की बात करो
तेरे पास आशिक के लिए कुछ नहीं बचता है
तेरी आंखों में भी हमने आंसू ही तो देखे थे
मयक़दे में आके शराबी, बन गया रे बन गया
आधी रातों में वो दिल को छूकर चली गई
इश्क शायरी 21-30
आज भी इंसानी दुनिया रीत में पुरानी है
इश्क मुझको है तुमसे, चीज़ों से नहीं
आह ये मुरझाया गुलाब जाने कब खिलेगा
लो मेरे वालिद तेरे कदमों में, हमने ये रूह गिरवी रख दी
जानती हूं तुझे जाने कितनी सदी से
बस यही सोचके तुम्हें याद किया करता था
इस अदा से मेरे दिल में गुलाब खिला
तू ही तस्वीर थी और दिल मेरा आईना था
तेरी जुल्फ में लगा सकूं, वो कली न मैं खिला सकूं
मुझे दिल से जो भुला दिया, तो तूने क्या बुरा किया
इश्क शायरी 31-40
मेरे लब चूम लेते माहजबीं को मगर
दिल बता दे कि मेरी प्यास कितनी है बची
कैसा जंगल है ये समाज देखिए तो जहां
बीती बातों को दुहराने से फायदा क्या है
अपनी आँखों में उसे बाँध कर भला मैं कैसे रखूं
वहीं मिल जाएगी एक दरिया उसे रोती हुई
मैं तो पीती हूँ कि साँस लेने में दिक्कत ना हो
आप क्यों इस प्यार को कहती हैं पहला-पहला
हद से ज़्यादा ये दर्द जब बढ़ जाएगा
शीशे के खिलौनों से खेला नहीं जाता
इश्क शायरी 41-50
अब तो करीब आओ कि मुद्दतें हुए मिले
वो गज़ल है जो मिली है कोरे कागज़ को
अश्कों में डूबता हुआ जलता हुआ दिल है
दिल के मसले पे न बनिए खुदगर्ज़ सनम
जिस अज़नबी ने मुझको तलबगार किया है
सबकी तरह बेदर्द थे हम जब इश्क से बेगाने थे
दुनिया को हम इस कदर दिल से ठुकराते हैं
वो ही डरते रहे बहुत इस मुहब्बत से
हर आदमी में वफा हो ऐसा हो नहीं सकता
वो इश्क क्या करे जो रस्मों को निभाते हैं
इश्क शायरी 51-60
जब जज़्ब कर गए हम हर दर्द को इस दिल में
जिसने न कभी इश्क का है लुत्फ उठाया
सोलह बरस के बाद तुम जवां हुए तो ये हुआ
इन दीवारों से बनी कैद में जी लेती हूं
सो चुके हैं सभी पर वो जागते ही रहे
अब कहां जाएं भला जब तुम हमें ठुकरा गए
दिल के शीशे पे दुनिया में पत्थर बरसे
झूठ भी बोलता हूँ तुमको हंसाने के लिए
फिर क्यूं शिकायत करें बेवफा से
कभी तो मिलोगी तुम उसी दरिया पे बैठे हुए
इश्क शायरी 61-70
हमसे अगर ये राज तुम बतलाओ तो जानूं
दिलकश निगाहों से जरा बचकर दिखा दो तुम
इस दिल के सफर को काटना नहीं आसां
दीदार को प्यासी रही मेरी दो अंखियां
जरा मुड़के देखो मुझे तुम दीवाने
इस जमाने में जब मुहब्बत मिल जाएगा
मौत के वक्त तुझे चूमने की ख्वाहिश है
ख़ुदा जाने वो किस माटी की बनी है
इश्क शायरी 71-80
तुमको पुकारता ही रहा वो तेरे शहर में
तेरे हाथों से जब छूट जाएंगे हम
ये तेरी उदासी को किसी ने न मिटाया
आंसू भी छलक आए हैं मजबूर की तरह
रात गहरी हुई बस्ती बड़ा सुनसान हुआ
शाम से रातभर उनको भी जरा याद करें
तुम्हें देखना मेरी आदत है लेकिन
तेरे जाने की अब किससे शिकवा करें
मैं न जानूँ कि ये किसकी दास्तां है
अपने चेहरे से ये जुल्फें मुझे हटाने दो
इश्क शायरी 81-100
मैं आईना बनके उसका इंतजार करता हूं
तेरे आशिक को तेरी याद बहुत आती है
तुमसे रिश्ता है कैसा, आईना जानता है
क्या-क्या हो रहा सीने में ऐ दिल देखो
हम तुझे सोचकर इस दिल पे तरस खाते हैं
दिल की एक नाजुक कली पे दर्द के शबनम रखे हैं
अपना दिले-नादान लेकर हम जबसे शहर गए
जो जवां होके महक जाए वो शबाब हुए
तेरी जुल्फ में लगा सकूं, वो कली न मैं खिला सकूं
राहत नहीं उस चांद को, हर आग को जो सह गया
खामोशियां, तन्हाइयां और दर्द की अंगराइयां
दर्द की आग में मुझको जल जाने दे
क्या मांगू मैं खुदा से जब, मेरे मन को तू मिल गया
ऐ मेरे दोस्त, मेरे दर्द पे तू क्यों रोया
तू भी तस्वीर के मानिंद चुप रहती है
टूटने से भी जब दिल को तसल्ली न मिली
तेरे आगोश में मिटता है मेरा नामोनिशां