
इधर वो चांद डूबा था उधर सूरज नहीं निकला
गमे दिल से कभी खुशी का सबेरा नहीं निकला
आवारगी की जिंदगी तो जिंदगीभर चलती रही
कहीं पर भी मगर इश्क का बसेरा नहीं निकला
जमाने में जाने किस किसको नागन डस चुकी
उसे पकड़ने को डर से कोई सपेरा नहीं निकला
जब जब मुसीबतों में घिर गया था मैं बुरी तरह
मुझे बचाने को घर से वो यार मेरा नहीं निकला
©राजीव सिंह शायरी
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मेरी तन्हाई को गम से आबाद कर गया
तेरा इश्क जो मुझको बरबाद कर गया
घेरती हैं मुझको जो तेरी हसीं जुल्फें
अंधेरों में दिल तेरा अहसास कर गया
ऐ अजनबी किस ओर ले चली हो मुझे
ये आवारगी तो मुझको खराब कर गया
तेरे चेहरे को ख्वाबों में निहारता हूं मैं
मुझे चैन से महरूम ये शबाब कर गया
©RajeevSingh
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मेरी जिंदगी अब तेरी गली में
तेरी बंदगी अब तेरी गली में
तेरे शहर में भटका बहुत हूं
ये आवारगी अब तेरी गली में
दिल से नजर तक तू छा गई
खोजूं मैं खुद को तेरी गली में
तू मेरे ख्वाबों की कमसिन परी
देखता हूं तुझे मैं तेरी गली में
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दिल जो तोड़ा तो किया कोई बुरा काम नहीं
जानेमन तेरी मुकम्मल कोई दास्तान नहीं
जो अधूरा हो मगर फिर भी पूरा लगता हो
सिवाय इश्क के है ऐसा कोई मुकाम नहीं
मंजिलों के लिए मरते हैं वो मुसाफिर ही
जिनके सर पे आवारगी का इल्ज़ाम नहीं
कभी छोटी सी एक बात बुरी लगती थी
आज कितनी भी बड़ी बात से परेशान नहीं
©RajeevSingh #love shayari
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