जिंदगी से मेरी मुलाकात तो यूं ही रह गई
मुझे पता भी न चला और ये गुजर भी गई
हंसते-हंसते जाने कब मेरा बचपन बीता
बड़ी हुई तब होठों से हंसी उतर भी गई
कुछ न था तो आंखों में हसीन दुनिया थी
अब सबकुछ है तो मेरी वो नजर भी गई
शहर में भागती रही, तू फिर भी न मिला
तेरी तलाश में कितनी बार ठहर भी गई