
क्यूं है सर्द-सर्द चांद, क्यूं है जलता आफताब
क्यूं हैं ये खामोश तन्हा, कौन दे इसका जवाब
कुछ दिनों तक लिख न पाया मैं कोई भी गजल
उन दिनों मैं भूल गया करना जख्मों का हिसाब
तेरी यादों संग बैठा अपने चमन की वीरानी में
उजाड़कर ले गयी ये दुनिया मेरे बगीचे का गुलाब
फासला दो-चार कदम का तय न कर पाए कभी
थे करीब हम-तुम लेकिन बंदिशें थी बेहिसाब
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दिन की गर्दिश से निकलके जरा आराम करें
शाम से रातभर उनको भी जरा याद करें
ये शहर लाख बुरा है, मगर वो तो यहीं है
उनकी गलियों में उन्हें रोज ही आदाब करें
हाले-दिल फूल से ऐ बहार ना पूछा करो
कैसे वो अपने छुपे दर्द बेनकाब करें
जो सुहाना सा लगा है, कैसे भुलूं उसको
इश्क के जख्म को हम सीने में बेहिसाब करें
©RajeevSingh # love shayari #share photo shayari
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