
निगाहों की शाम आ ही गई
जुदाई की रात आ ही गई
दर्द की बज रही है शहनाइयां
यादों की बारात आ ही गई
जलती है शम्मा हौले-हौले
मीठी सी आग आ ही गई
सन्नाटे में तो कुछ आता नहीं
करवटों की आवाज आ ही गई
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गम से याराना नहीं, गम से आशनाई है
दर्द है सीने में और जिस्म में तन्हाई है
एक सुरीली सी हवा तेरे दर पे ले आई
क्या खबर थी कि ये हिज्र की शहनाई है
अब उदासी ही दिखेगी मेरी सूरत में
अपनी ये तस्वीर मैंने तुमसे ही बनवाई है
आंख भर लेते हैं जब याद तेरी आती है
तेरे खातिर ही मैंने बांध ये खुलवाई है
हिज्र – जुदाई
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